शुक्रवार, 12 जून 2020

एक पत्र मुख्यमंत्रीजी के नाम

माननीय मुख्यमंत्री महोदय,

सादर नमन,

विषय: ट्यूशन फीस अनुमति की घोषणा के संबंध में पालकों की समस्याएं, सवाल एवं विद्यालयों की अनावश्यक मांगों के महत्वपूर्ण बिंदु जिन्हें घोषणा में शामिल नहीं किया गया, पर आमजन का आपसे निवेदन एवं उनके सुझाव बाबत।

विनम्र निवेदन करते हुए, मैं आपका ध्यान एक ऐसे ज्वलंत विषय की और आकर्षित करना चाहती हूँ,जो आमजन विशेषकर अभिभावकों के समक्ष इस आपातकाल परिस्थिति में मानसिक चिंता उत्पन्न करने वाली विशेष व गंभीर समस्या बन चुका है।

  माननीय मुख्यमंत्री महोदय द्वारा दिनांक 8 जून को इंदौर दौरे के दौरान जारी किये गए विडिओ में विद्यालयों को ट्यूशन फीस लिए जाने की अनुमति प्रदान की गई जिसका अनेक सीबीएसई/इंटरनेशनल विद्यालय अनुचित लाभ उठा रहे हैं।लगभग सभी अभिभावकों का मत है कि इस विषय पर पूर्णतः विचार विमर्श नहीं किया गया। साथ ही विभिन्न मुख्य बिंदुओं का इसमें समावेश नहीं किया गया जिस कारण विद्यालय मनमाने चार्ज अभिभावकों पर थोपने हेतु स्वतंत्र हैं और आज अभिभावक मानसिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं ।विषय सम्बंधित समस्याओ व् उनके सुझावों का समावेश कर लिखे इस पत्र का आशय फीस का विरोध जताना नहीं है अपितु उन्हीं बिंदुओं की और प्रशासन का ध्यान आकर्षित करना है जिन पर आमजन के मत से विचार किया जाना आवश्यक है।

समस्या1 -सबसे महत्वपूर्ण बात इसमें उन अभिभावकों की व्यथा की और बिलकुल ध्यान नहीं दिया गया जो निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं तथा जिन्हे सम्पूर्ण लॉकडाउन के दौरान या तो आधे वेतन का भुगतान हुआ है या वेतन प्रदान ही नहीं किया गया है। कुछ ऐसे भी हैं जिनको 1 ही महीने का वेतन मिला है वह भी आधा या उससे भी कम।साथ ही कुछ निजी संस्थानों को अब भी खुलने की अनुमति नहीं मिली है यथा रेस्टोरेंट, कैफ़े, मॉल, सैलून, जिम इत्यादि। इस क्षेत्र से जुड़े कर्मचारी जिनको न लॉकडाऊन में वेतन मिला है और आगे भी कब मिलेगा कोई उम्मीद नहीं है,कैसे उस ट्यूशन फीस का भुगतान कर सकेंगे जो एक छोटा मोटा आंकड़ा न होकर कुल फीस का 80 से 90 प्रतिशत होती ही है।आपके द्वारा ट्यूशन फीस की अनुमति विद्यालयों को लेने की दी गई और जिसके साथ ये पक्ष रखा गया कि ये देना आवश्यक है क्योंकि विद्यालयों को भी परिचालन खर्च यथा स्टाफ को सैलरी और अन्य खर्च वहन करने होते हैं ।जब अन्य निजी क्षेत्रों को वेतन ही नहीं मिला फिर भी वे जैसे तैसे अपना घर् चला रहे हैं और राष्ट्रीय आपदा से आई इस विपत्ति से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं जबकि उन्हें किसी के द्वारा भुगतान प्राप्त नही हो रहा है। वैसे ही इस राष्ट्रीय आपदा में विद्यालयों को भी अपने हिस्से का नुकसान स्वयं उठाकर शिक्षकों को वेतन दिया जाना चाहिए । वैसे भी सर्व विदित है कि शिक्षा जगत सबसे बड़ा व्यापार बन चुका है लगभग सभी विद्यालय मुनाफे के कारोबारी रहे हैं। अतः इस विपत्ति के समय वे अपने सभी परिचालन खर्च स्वयं उठाने में सक्षम हैं।

सवाल 1- क्या ट्यूशन फीस लिए जाने की अनुमति देने का यह निर्णय ऐसे अभिभावकों को मानसिक रूप से पूर्णतः तोड़ देने क लिए काफी नहीं होगा,जिन्हे 3 महीनों से वेतन नहीं मिला फिर भी वे परिवार के पालन पोषण हेतु हिम्मत जुटा कर संघर्षरत हैं ? उदाहरण हेतु 1परिचित अभिभावक जो रेस्टोरेंट में कार्यरत हैं,15000 सैलेरी पर। पुरे लॉडाउन में मात्र 5000 सैलरी उन्हें मिली और अब वो भी बंद है। किराए के मकान में रहते हैं और पत्नी भी उन्ही के रेस्टोरेंट में रिसेप्शनिस्ट थीं। अब स्टाफ का खर्च वहन न कर पाने के कारण उन्हें दूसरी नौकरी देखने को कह दिया गया है। बच्चे की प्रत्येक तिमाही की सिर्फ ट्यूशन फीस ही 7700 है। ज़ाहिर है ऐसी स्थिति में उनके लिए फीस देने की कल्पना करना ही कितनी मानसिक यंत्रणा देने वाला विचार होगा।

सुझाव 1- ट्यूशन फीस का मापदंड निर्धारित किया जाना चाहिए ये कम से कम हो। साथ ही ऐसे अभिभावक जो कैफ़े रेस्टोरेंट जिम सैलून मॉल इत्यादि जैसे निजी संस्थानों में कार्यरत हैं और जिन्हें वेतन नही मिल रहा,उनके लिए फीस पूर्णतः माफ़ की जानी चाहिए।


समस्या २- लगभग सभी विद्यालयों ने अपने अपने स्तर पर ऑनलाइन कक्षाएं प्रारम्भ कर दी हैं। कुछ प्रतिष्ठित विद्यालयों ने तो अप्रैल में भी तथाकथित कक्षाएं दी। मई के महीने में समर कैम्प के नाम पर बच्चों को ऑनलाइन उलझाये रखा। अब जून से नियमित कक्षाओं के स्वांग शुरू है। क्षमा चाहूंगी पर स्वांग इसलिए  कहा कि 10 तरह के एप्लीकेशन अभिभावकों को अनिवार्यतः मोबाइल में डाउनलोड करने को निर्देशित किया गया है। क्लास सिर्फ 15 मिनिट या आधे घंटे की दी जा रही है और उसमें भी नर्सरी से लेकर कक्षा5 तक के छोटे छोटे बच्चों को भी अनिवार्य रूप से क्लास जॉइन करने के लिए कहा जा रहा है। विद्यालय प्रबंधन की ऑनलाइन क्लास के नाम पर किसी भी मीटिंग एप्लिकेशन पर टीचर आधा घंटा बच्चों से बात कर चली जाती है तत्पश्चात विभिन्न व्हाट्सएप्प समूहों तथा विद्यालय द्वारा निश्चित किये गए वेबसाइट/पोर्टल पर अभिभावकों के लिए निश्चित किये गए प्लानर में से बच्चों को होमवर्क करवाने को कहा जाता है। जिसमे 25 30 तरह की एक्टिविटी के साथ यू ट्यूब पर विभिन्न चैनल्स द्वारा पहले से अपलोड किए हुए वीडियो की लिंक दी जाती है। जो बच्चों को दिखाना आवश्यक होता है। साथ ही इन ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से अभिभावकों का अतिरिक्त खर्च बढ़ गया है 250 से 350 प्रतिमाह का डाटा रिचार्ज भी करवाना ह

सवाल 2- अभिभावकों को जब अपने काम छोड़कर पढ़ाई खुद ही करवानी है  एप्लीकेशन तथा यूट्यूब के विडिओ ही दिखाने हैं तो ये ऑनलाइन कक्षाओं का स्वांग किसलिए?ये तो अभिभावक स्वयम भी बिना किसी मार्गदर्शन के स्वयं भी बाल विहार (किंडरगार्टन) तथा प्राथमिक कक्षाओं के छोटे बच्चों तो पढ़ा ही सकते हैं अपने समय के से अधिकतर समय बच्चे की पढ़ाई पर देना है पहले खुद पढ़ना फिर बच्चे को पढ़ाना है। और उसके बाद पूरी फीस भुगतान भी करना है साथ ही विरोध करने पर बच्चे का परिणाम रोक लिए जाने के भय से भी लड़ना है। जब सभी अभिभावक को करना है तो सेवा शुल्क किस बात का?

सुझाव2- बाल विहार और प्राथमिक कक्षाओं के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की अनिवार्यता समाप्त की जानी चाहिए या इसके लिए मापदंड और समय निर्धारित किया जाना चाहिए। किसी भी एप्लीकेशन के डाउनलोड करने की अनिवार्यता समाप्त की जानी चाहिए। किसी मजबूरीवशफीस भुगतान कम करने या न करने पर रिजल्ट न रोके जाने का आदेश जारी किया जाना चाहिए।

समस्या 3- माननीय मुख्यमंत्री जी के उद्बोधन में सिर्फ ट्यूशन फीस लिए जाने की अनुमति दी गई थी पर ट्यूशन फीस का कोई पैमाना कोई मापदंड निर्धारित नही किया गया। प्रत्येक विद्यालय की ट्यूशन फीस उनकी प्रतिष्ठा के अनुसार अलग अलग है साथ ही मौजूदा स्थिति में अभिभावकों को वेतन प्राप्ति के मापदंड भी बदल गए हैं ।कइयों को वेतन मिला ही नही और न ही अब मिल पा रहा है। ऐसे में फीस भरना उनके लिए बड़ी समस्या है। साथ ही कोई मापदंड घोषित न किये जाने से विद्यालय ट्यूशन फीस के नाम पर मनमाना चार्ज वसूल रहे हैं। अनावश्यक खर्चों को इसमें जोड़ा जा रहा है। साथ ही ऑनलाइन क्लास के स्वांग का चार्ज भी सेवा शुल्क के नाम पर वसूलने की तैयारी की जा चुकी है। इसके साथ ही लर्निंग किट या एडमिशन किट का चार्ज भी लिया जा रहा है।
 बच्चों को होमवर्क करवाने के लिए स्कूल की बनाई हुई वर्कशीट स्कूल के पोर्टल पर अपलोड की जा रही है और अभिभावकों को उसका प्रिंट निकालकर उसी पर होमवर्क करवाने को कहा जा रहा है। क्योंकि इसके पहले विद्यालय इसे एडमिशन किट के या लर्निंग किट के नाम पर अभिभावकों को अनिवार्य रूप से बेचा करते थे। अभी भी अभिभावकों को इस किट को ऑनलाइन आर्डर करने की अनिवार्यता कर दी गई है। किट को घर पर अभोभवकों को मंगवाना है और उसे विद्यालय खुलने पर जमा भी करवाना होगा। ऐसे कई अनावश्यक खर्चों के फरमान तथाकथित इंटरनेशनल  सीबीएसई विद्यालयों द्वारा जारी कर दिए गए हैं। साथ ही जब तक आप किट आर्डर नही करते,आपको बच्चे को प्रिंटआउट निकलवा कर ही होमवर्क करवाना है।
जानकारी के मुताबिक ये लर्निंग किट प्रत्येक विद्यालय के स्टैण्डर्ड के हिसाब से 4600 से 8000 तक के भुगतान पर दी जाती है(ये आंकड़ा बाल विहार ओर प्राथमिक शालाओं की किट का है।) जिसमे अनावश्यक वस्तुओं का अंबार रहता है स्कूल के नाम की प्रिंटेड कॉपी होमवर्क के लिए तथा स्कूल वर्क के लिए, बच्चों का आईडी कार्ड, अभिभावको के लिए विशेष कार्ड के साथ स्कूल का नाम प्रिंट किया हुआ स्कूल बैग,जैसी गैर ज़रूरी वस्तुएं होती है जिनका इतना चार्ज वसूला जाता है।
साफ है कि ऐसे व्यापारिक प्रतिष्ठान 1 साल फीस माफ कर अपने स्टाफ को वेतन आराम से दे सकते हैं। जबकि इस साल फीस के अलावा उनकी ऑनलाइन इनकम अलग से होगी। स्कूलों ने अपने वीडियो यूट्यूब पर भी अपलोड किए हैं। कुल मिलाकर इस आदेश का आशय स्कूलों की भरी जेब को अभिभावकों की खाली जेब से भरने के साथ ही स्कूलों को ऑनलाइन इनकम के मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया जाना है। यानी ऐसी प्राकृतिक आपदा में भी विद्यालय व्यापार मुनाफे का व्यापार साबित होगा।

सवाल 3- होमवर्क घर मे उपलब्ध किसी कॉपी या रजिस्टर पर भी हो सकता है या दुकानों पर उपलध 10 rs की कॉपी पर भी तो जब बच्चे स्कूल नही जा रहे तो इस अनावश्यक किट की क्या आवश्यकता है? पठान सामग्री तो पोर्टल ओर वीडियो पर ही उपलब्ध है । सिर्फ ट्यूशन फीस लोए जाने की घोषणा माननीय मुख्यमंत्री महोदय के द्वारा की गई थी फिर उस के साथ  किट और ऑनलाइन क्लास के सेवा चार्ज वसूलने का अधिकार विद्यालयों को किसने दिया?

सुझाव 3- ऑनलाइन किट या क्लासेस के नाम पर लिए जाने वाले अन्य सभी शुल्कों पर रोक लगाई जानी चाहिए किट की अनिवार्यता समाप्त की जानी चाहिए। एक विस्तृत आधिकारिक घोषणा कर, विद्यालयों को सम्पूर्ण ट्यूशन फीस की अनुमति न देकर 1 निश्चित फीस अमाउंट या कक्षा के प्रति घण्टे के हिसाब से शुल्क जो कि अभिभावक इन परिस्थितियों में वहन कर सके वसूलने के लिए ही अनुमति दी जानी चाहिए।

बाल विहार और प्राथमिक शाला के अभ्यर्थियों की फीस पूर्णतः माफ की जानी चाहिए। तथा ऑनलाइन कक्षा की अनिवार्यता समाप्त कर उनकी ऑनलाइन क्लासेस का समय कम से कम रखा जाना चाहिए। साथ ही अभिभावकों द्वारा यदि इस साल फीस कम दी जाती है या वे देने में असमर्थ हों तो भी बच्चे का रिजल्ट तथा टी. सी. न रोके जाने के आदेश दिए जाने चाहिए ताकि यदि वे इस आपदा के बाद बच्चे को उस विद्यालय में पढ़ाने में असमर्थ हों तो वे अपने बच्चे का प्रवेश अपने बजट के अन्य विद्यालय में करवा पाने में स्वतंत्र हों तथा इसमें उन्हें किसी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।


शिक्षा तंत्र की मनमानी से व्यथित मेरे जैसे लाखों अभिभावकों की आपसे विनम्र विनती है कि इन सभी बिंदुओं का एक लिखित आदेश बनाकर सभी विद्यालयों को प्रेषित किया जाए ताकि वे नियमानुसार ही फीस लें और मनमाना शुल्क अभिभावकों को से न वसूलें। जिससे इस विपत्ति के समय मे जब वे अनेक मानसिक परेशानियों से ग्रस्त होकर लड़ने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें इस सबसे बड़ी चिंता से मुक्ति मिले साथ ही वे जीवन संग्राम में दुबारा खड़े हो सकें।
जय हिंद
मध्यप्रदेश से एक आम नागरिक🙏

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

कोरोना: देश और समाज के प्रति क्या है आपकी जिम्मेदारी

कोरोना😡 मनुष्यों से मनुष्यों में आसानी से त्वरित फैलने वाली 1 महामारी ✅✅

ये कोई मज़ाक नही है 😡

ऐसी महामारी जिसके लक्षण
पता भी नही चलते 4 5दिन तक।😯

आपको लगता है कि आपको आम सर्दी जुकाम है
कभी कभी वो भी दिखाई नही देता

और वायरस बड़ी आसानी से आपके शरीर को अपना घर बना लेते हैं

सोचिये आपके शरीर मे वायरस है और आपके छींकने खांसने से किसी व्यक्ति के सम्पर्क में आता है अगर वो आपसे मिलने के बाद अपने हाथ पैर मुंह साबुन से धो ले उसे वायरस का कोई खतरा नही होता।
👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻 तो
बार बार हाथ धोने वालो का मज़ाक बनाना बंद कर सफाई रखें ये कभी भी कहीं भी किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है।🙏🏻

अगर आपको सर्दी जुकाम है तो कुछ दिन घर मे रहें बच्चों को भी घर मे रहने की हिदायत दें। कुछ परिजन बच्चों के प्रति बहुत लापरवाह हैं 🤷🏻‍♀
स्कूल की छुट्टियां दिनभर उन्हें बाहर खेलने देंने के लिए नही लगी हैं। बच्चे 1 दूसरे के सम्पर्क में न आये इसलिए दी गई है। और आपके बच्चे पूरा दिन बाहर खेल रहे आपको कोई लेना देना नही है वो कहा किसके  साथ खेल रहे हैं। बच्चों और बुज़ुर्गों को घर मे रखें ऐसा न हो कि बाद में पछताते रह जाएं

सरकार पागल नही है जो बाहर से आये लोगो की जांच कर उन्हें 14 दिन निगरानी में रख रही है वायरस के लक्षण दिखाई नही देते आसानी से पर वो किसी में भी हो सकता है🙏🏻

सर्दी जुकाम वाले बाहर न जाएं बहुत जरूरी हो जाना तो मास्क पहन कर जाए ताकि आपसे किसी अन्य को संक्रमण का खतरा न हो

बाहर से लाये सब्जी फलो को  गरम पानी से धोये बिना उपयोग में न ले

दरवाजो के हैंडल धातु, सार्वजनिक स्थानों के स्टील फर्नीचर मंगवाए गए पार्सल नोट लेटर आदि को छूने के बाद बिना हाथ धोये उन हाथो को चेहरे या मुह पर न लगाएं ये संक्रमण फैला सकते हैं बार बार बालों और चेहरे को हाथ लगाना आपकी आदत में शुमार हो तो फिलहाल इससे बचें और विशेष ध्यान रखें कि बच्चे भी बिना हाथ धोये अपने हाथ मुंह और नाक के संपर्क में न लायें
बाहर जाकर आएं अगर खासकर अस्पताल या किसी सरकारी दफ्तर या बैंक से तो आते ही कपड़े बदलें उन कपड़ों को गर्म पानी मे डालकर धोएं।

थोड़े दिन के लिए अतिथि देवोभवः भूल जाएं मेहमानों को आमंत्रित न करे न ही किसी आयोजन में जाये सिर्फ 30 दिन की बात है 1 बार हम 3rd स्टेज से बाहर आ गए तो खूब जश्न मना लीजियेगा कोई आपके यह आता भी है तो उससे 1 मीटर की दूरी बना कर ही बातचीत करें कुछ भी खाएं बनाएं या खिलाये पिलाएँ हाथो को साफ पानी साबुन से धोकर ही।

सेनिटाइजर ओर मास्क को मज़ाक न बनाएं ये दिखावे की वस्तु हैं ऐसा समझने की भूल बिल्कुल न करे जहा आप साबुन से हाथ नही धो सकते वहां सेनिटाइजर का इस्तेमाल करें मगर घर आने के बाद साबुन पानी से हाथ जरूर धो ले
हो सके तो अपने घर मे भी सेनिटाइजर का छिड़काव करें सरकार पर आश्रित न रहे बचाव ही तो असली इलाज है।
ये भी न सोचें कि मरना तो है ही एक दिन। या हमे कुछ नही होगा ये सब भ्रांतियां है। सबसे बड़ी भ्रांति कि लहसुन और अल्कोहल के सेवन से आप इससे बच सकते हैं ऐसी बातों में आकर जान से न खेलें



भारत के अस्पतालों में इतनी सुविधाएँ नहीं है कि इतने लोगों को एकसाथ isolation में रखा जा सके। सेल्फ आइसोलशन अपनाएं। जिन्हें बाहर बहुत जरूरी काम न हों वे घर पर रहें सेफ रहें।🙏🏻 हम सह प्रयास से अभी कोरोना को रोक सकते हैं 1 बार हमारे ग्रामीण इलाकों में अगर ये फैल गया तो किसी के लिए भी इसे रोकना मुमकिन नही होगा। ग्रामीणों को जागरूक करें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाएं🙏🏻



 भारत को अग्रणी बनाने और नाम रोशन करने का यही तरीका है दुनिया मे। जब लोग कहेंगे बड़े बड़े देश जिस बीमारी को फैलने से न रोक पाए भारत के नागरिकों ने कर दिखाया👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👌🏻👌🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻



रविवार के दिन जनता कर्फ्यू को समर्थन दे 1 दिन आपके बाहर न जाने से कुछ नही बिगड़ जाएगा। अच्छा है इस बहाने व्यस्त जीवन से आप एक दिन अपने परिवार के लिए निकाल कर छुट्टी ले रहे हैं यही सोच कर घर रह जाएं वाकई हम 80 प्रतिशत खतरे को कम कर देंगे अगर हम एक दूसरे के सम्पर्क में आने से बचे तो वायरस फैलने के बजाय नष्ट हो जायेगा। उसका चक्र टूट जायेगा। सहयोग करे सुरक्षित रहे🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Dj🖋

बुधवार, 8 जून 2016

मेरे घर आई एक नन्ही परी

महक गई यूँ देखो मेरे जीवन की फुलवारी 
आ गई मेरे आँगन में तू नन्हीं परी हमारी 

अविस्मरणीय 13  जनवरी  2016 

एक सुकून तेरी भोली सूरत, तू दुनिया में सबसे खूबसूरत 
तेरा कोमल स्पर्श ह्रदय स्पंदन, तेरा सानिध्य है जैसे सुगंध चन्दन 
तू है मेरे आँगन का वो पारिजात स्वर्ग से धरती पर उतरा है जो मेरे लिए खास 
मेरे आँगन की चहकती चिड़िया तू, तू ही रत्न कोहिनूर है
तू जब पास मेरे तो लगे हर गम मुझसे दूर है 

रोहिणी की तपिश में सानवी, तू ही ठण्डी श्रावणी बयार
देखूँ तुझे तो मन करता है यूँ ही निहारूँ तुझे बारम्बार 
मेरे जीवन संगीत का तू है इकतारा 
मेरे लिए तो तू ही है नीलगगन का ध्रुवतारा 
जब जब डाले तू मुझ पर स्नेह दृष्टि 
लगता है मोह लुटा रही हो मुझ पर सारी सृष्टि 
तू ही मेरी नन्ही सखी तू ही मेरी परछाई 
 मेरे मन की हर मुराद  थी जैसे तुझमें ही समाई 
तुझसे ही अब सारे सपने सारे सुख दुःख तुझसे ही 
चाहे जो तू दूँ तुझे हमेशा दुआ भी रब से अब ये ही 
अब ख्वाब एक ही आँखों में तुझसे दिल की हर बात कहूँ 
हम मिलें ढेरों बातें हो कुछ तू कहे कुछ मैं सुनूँ 
जो मिला मुझे न जीवन से जो भी अरमान अधूरे हैं 
वो सबकुछ तुझको दे पाऊँ अब ये अरमान सुनहरे हैं 
तू रहे स्वतंत्र हमेशा ही तुझपे न किसी की बंदिश हो 
जो चाहे तू वो कर जाए जीवन में हर मुराद तेरी पूरी हो 

सानवी
प्रिंसी 
मेरे घर आई एक नन्ही परी 



रविवार, 17 मई 2015

धरोहर


रविवार, 19 अप्रैल 2015 को मेरे द्वारा प्रकाशित कविता 

"पराई"  (नारी का, नारी को, नारी के लिए....: "पराई"पर परम आदरणीय श्रीमान सुशील कुमार जोशी साहब द्वारा प्रतिउत्तर में लिखी गई कविता,जो मेरे लिए किसी धरोहर से कम नहीं ये धरोहर सहेजने हेतु ही आज यहाँ प्रकाशित की है। 


बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है माना है 

पर कुछ ऐसा भी नहीं है क्या ? :)


समय कुछ कहीं कहीं 

बदलता हुआ भी 

नजर आ रहा है 

बेटी और बेटे में 

फर्क करने से 

आदमी अब कुछ 

बाज आ रहा है 

धैर्य रखना है 

और मजबूत 

करना है बेटियों 

को इतना अब 

आशा भी है 

और विश्वास भी है 

बेटी में बेटा और 

बेटे में बेटी 

देखने का समय 

जल्दी और बहुत 

जल्दी ही आ रहा है :)

गुरुवार, 7 मई 2015

तेरी प्रीत

मैंने जोग लिया हर ज़हर पिया,
तेरी प्रीत में ये जग छोड़ दिया, 
इस प्रीत में ऐसी खो गई मैं ,
हर शख्स से नाता तोड़ लिया।  

बैरी बन गया तू ही मोरा पिया,
यही सोच के अब ये जले जिया, 
तेरी प्रीत में जग से बैर लिया,
तूने जग से ही नाता जोड़ लिया।  

हर शख्स मुझे समझाए यहाँ ,
तेरी प्रीत को ही ठुकराये जहाँ, 
मैं साज़ हूँ तू संगीत पिया ,
बिन धड़के कैसे फिर रहे जिया। 

मेरे दिल की लगी बस मैं जानूँ ,
तेरी प्रीत को ही सब कुछ मानूँ, 
तेरे प्रेम की ही धरा में रहूँ  ,
फिर कैसे तुझे अलविदा में कहूँ।  

एक बस तेरा इंतज़ार करूँ ,
बस तुझसे ही आँखें चार करूँ, 
बैराग सा है इक रोग सा ये,
इस इश्क़ में सारे दर्द सहूँ।

(स्वरचित ) dj  कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google
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एक लेखनी मेरी भी  http://lekhaniblogdj.blogspot.in/ 

रविवार, 19 अप्रैल 2015

"पराई"

आज भी हमारे इस सुसंस्कृत समाज में ऐसे कुछ सभ्य पढ़े लिखे प्रबुद्धजनों की कमी नहीं जो बेटियों के जन्म से व्यथित हो जाते हैं। क्यों? प्रश्न के जवाब में  उनका रटा रटाया एक ही जुमला सुनने को मिलता है-
"भाई !बेटी तो पराई होती है।"
उनके लिए बेटा प्यारा और
 बेटी लाचारी होती है 
क्योकि मज़बूरी है क्या करें?
बेटी तो पराई होती है। 
ये कविता उन तर्कवान लोगों को समर्पित -

सबकी ख़ुशी के लिए एक दिन,
जो अपना ही घर छोड़ आई। 
जाने कैसे कह देते हैं, 
एक पल में उसे "पराई" 

अपनी खुशियों के मोती से, 
माला उसने आपके लिए बनाई।
पर है तो वो बेटी और, 
बेटी तो होती है "पराई"

दामन में उसके दुःख हैं,
पर आपके चेहरे पर न छाए उदासी, 
इसलिए हर पल वो मुस्कुराई। 
फिर भी बेटी जाने क्यों होती है "पराई

आपकी पलकें भीगी नहीं,
लो उसकी भी आँखें छलक आईं। 
कितने गुणों की खान हो पर, 
बेटी तो होती है "पराई

अपनी हर मुस्कान में,
आपकी पीड़ा को समेट लाई। 
लाख जतन करले पर ,
वो कहलाएगी बस "पराई"

छोटे से इस आँचल में, 
आपके लिए खुशियाँ तो ढेर बटोर लाई 
पर नहीं ला पाई वो "अपनापन",
तो होगी ही "पराई"

सहनशीलता, संयम, धैर्य की, 
जब भी बात है आई 
सबके अधरों पर नाम बेटी का,
पर कहते फिर भी "पराई

मायके में "मर्यादा", 
ससुराल में "लक्ष्मी" कहलाई 
पर  अपनी किसी की फिर भी नहीं,
हर जगह सम्बोधन बस "पराई"

बसाकर अपना घर भी,
माँ-पिता का मोह न छोड़ पाई,
देह ससुराल में रमी मगर, 
आत्मा मायके में बसाई,
वो दुनिया में कोई नहीं बस.…… 
एक बेटी होती है भाई,
मत कहो.…… अरे !मत कहो.……… मत कहो उसे .…… 
"पराई"
 dj  कॉपीराईट © 1999 – 2020 Google
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शनिवार, 11 अप्रैल 2015

मुस्कान

आज dj की लेखनी का मन है,आपको एक संस्मरण के दर्शन कराने का। 
मैं इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ हूँ कि ये संस्मरण मेरे पाठकों के लिए उपयोगी है या नहीं ?ये भी नहीं जानती कि किसी के व्यक्तिगत संस्मरण को पढ़ने में सभी पाठकों की रूचि है या नहीं ?मगर वो नन्हीं-सी बालिका और उसकी प्यारी सी मुस्कान,मुझे रोक ही नहीं पाई लिखने से.…ये संस्मरण आज भी मेरी अमूल्य यादों का एक अभिन्न हिस्सा है। मेरे दृष्टिपटल पर वैसा ही विराजमान है और उसकी वो प्यारी मुस्कान भी.…। आज यहाँ लिखकर उस गुड़िया की मुस्कान को आप सब के साथ बाँटने जा रही हूँ। 
            

               एक बार मैं अपने पति महोदय के साथ देवास माता मंदिर दर्शन करने के उद्देश्य से पहुँची।मंदिर ऊँची टेकरी पर स्थित है। मंदिर की चढ़ाई शुरू होने से अंत तक फूल-मालाओं और प्रसाद  के साथ-साथ मूर्तियों,तस्वीरों और अन्य वस्तुओं की दुकाने सजी हुईं थी। चढ़ाई खत्म होने के पश्चात् टेकरी पर दो मुख्य मंदिर हैं जिनमे माँ तुलजा भवानी और चामुंडा माता की मूर्तियां विराजित हैं।इन्हें आम बोलचाल की भाषा में लोग क्रमशः बड़ी माता एवं छोटी माता कहते हैं। जिन पाठकों 
ने इस धार्मिक स्थल का भ्रमण किया है,वे जानते हैं इन दो मुख्य मंदिरों के दर्शन के पश्चात् की जाने वाली परिक्रमा की परिधि करीब दस से बारह मिनट की है और परिक्रमा करते हुए इस परिधि के अंतर्गत अनेक देवी-देवताओं के कईं छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों के पुजारी सुबह से यहाँ आकर मंदिरो की सेवा-पूजा में लग जाते हैं। अपने साथ खाने पीने का कुछ जरूरी सामान साथ ही लेकर बैठते हैं क्योंकि चढ़ाई चढ़ने के बाद ऊपर खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं होती।(वर्तमान में कुछ थोड़ी बहुत दुकानों की व्यवस्था हो चुकी है।)
                       

                     हम भी  दर्शन के पश्चात परिक्रमा करने लगे सभी लोग हर मंदिर में एक-दो रुपये की दक्षिणा रखते चले जा रहे थे। एक मंदिर  में एक छोटी सी बालिका जिसकी उम्र शायद कुछ सात-आठ वर्ष होगी, अपनी दादी के साथ बैठी थी। साधारण पर एकदम साफ़-स्वच्छ कपड़े और करीने से बंधे हुए बाल। उसके चेहरे पर अलग ही आभा चमक रही थी। उस पर उसका इतना मासूम-सा मुखमण्डल कि उसे देखते ही मैं उस पर मोहित हुए बिना रह ही न सकी। वो शायद अपनी दादी से बड़े प्यार मनुहार से कुछ विनती कर रही थी।ये नज़ारा दूर से ही दिखाई दे रहा था। उस मंदिर के समक्ष पहुँची नहीं थी मैं अभी। इसलिए उसकी बातें तो हमारे कानों तक नहीं पहुँच रही थी मगर उसके चेहरे की भाव-भंगिमाओं से ये निश्चित था कि वो उनसे कुछ मांग रही थी और उसकी दादी उसे समझा रही थी।शायद कह रही थी इतनी चढ़ाई उतरकर नीचे जाने और फिर चढ़कर ऊपर आने में उन्हें कष्ट होगा।बालिका छोटी होते हुए भी काफी समझदार थी। शायद इसलिए उनके एक बार समझाने पर ही मान गई। पर उसके मुखमण्डल पर माँगी चीज़ न मिल पाने की उदासी 
तो फिर भी छलक ही आई थी।
                            

                           ये सारा घटनाक्रम देखते देखते आखिरकार हम उस मंदिर के समक्ष पहुंचे। पति महोदय का ध्यान भी मेरी तरह उसी घटनाक्रम की और था शायद..... और वो मुझसे भी अच्छी तरह सारी स्थिति को भाँप गए थे। मैं कुछ समझ पाती उसके पहले उन्होंने जेब में हाथ डाला...... मगर.... सिक्का निकाल कर दान पेटी में डालने की जगह......एक चॉकलेट निकाली और उस गुड़िया के हाथ में थमा दी। और उसके चेहरे पर तुरंत मुस्कान बिखर गई एकदम इंस्टैंट......जैसे किसी लाइट का बटन दबाया और तुरंत प्रकाश बिखर गया हो और उसकी वो मुस्कुराहट हम दोनों के चेहरों पर मुस्कान लाये बिना न रह सकी। वो शायद कब से चॉकलेट ही माँग रही थी,मगर इतनी चढ़ाई उतरकर उसके लिए चॉकलेट लेने जाना और वापिस आना उसकी उम्रदराज़ दादी के लिए बहुत ही पीड़ादायक था। और मन माँगी चीज न मिल पाना उस बालिका के लिए। उस एक छोटी सी चॉकलेट ने दो लोगों की पीड़ा का समाधान कर दिया। 
                 वैसे भी भारतवर्ष में कन्याओं को "देवी" का रूप माना जाता रहा है,शायद ईश्वर ने हमारे हाथों उसकी वो छोटी सी मुराद पूरी करना ठानी हो बहुत शांति और सुकून की अनुभूति हुई घटना के बाद उसे खुश देखकर। शायद हमने उस कन्या के रूप में सच में एक जीती जागती "देवी "को प्रसन्न कर लिया था। 
         
                   इस घटना के बाद से हमने तय कर लिया है कि जब भी किसी चढ़ाई वाले मंदिर या दर्शनीय स्थल पर जायेंगे तो एक दो अतिरिक्त पानी की बोतलें,कुछ अतिरिक्त खाना, कुछ चॉकलेट्स और एक फर्स्ट ऐड बॉक्स जरूर साथ लेकर जाएँगे। 
                   
                   इसे हम शायद दान तो नहीं कह सकते, मगर जीवन में ऐसी छोटी -छोटी खुशियाँ बाँटते रहने से मन को बहुत आनंद की अनुभूति होती है।दान चाहे पैसों का न किया जाये,मगर जो किसी की भूख को तृप्त कर सके, किसी का तन ढँक सके, किसी के चेहरे पर थोड़ी सी देर के लिए ही सही मुस्कान ला सके, ऐसा दान अपने जीवन में हम सभी को कभी न कभी कर ही लेना चाहिए। है! ना ? तो जरूर कीजिये। क्या पता आपके जीवन में भी कोई ऐसी गुड़िया आपके स्मृतिपटल पर वो सुन्दर मुस्कान छोड़ जाए। क्या कहते हैं आप? 
ना! ना! कहिये नहीं। लिखिए, नीचे टिप्पणी में। 

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बुधवार, 8 अप्रैल 2015

कैसे सीख गई मैं "माँ"

पता नहीं कैसे सीख गई मैं माँ,
रोटी बनाना,
अब तो गोल बना लेती हूँ।  
वो भारत का नक्शा,
अब नक्शा नहीं,
पृथ्वी जैसा दिखता है।  
आधा पक्का,आधा कच्चा,
सिकता था जो,
अब अच्छे से सिकता है। 

न जाने कैसे मैं सीख गई माँ,
सब्जी बनाना, 
जो कभी तीखी,
कभी फीकी,
कभी,
लगभग बेस्वाद सी बनती थी
अब तो,
हर एक मसाला उसमे,
बराबर डलता है 
नमक बिना माप भी,
अब तो,
एकदम सही पड़ता है।  

जाने कब सीख गई मैं.
तय बजट में घर चलाना,
हर महीने,
कपड़ों पे खर्च कर देने वाली मैं,
अब तो,
पाई पाई का हिसाब रखती हूँ।
जरुरत की चीजों की खरीदी पर भी
अब तो,
काफी कंट्रोल करती हूँ

जाने मैं सीख कैसे गई माँ,

यूँ सबका ख्याल रखना,
किसी की परवाह न करने वाली मैं,
अब सबके लिए सोचने लगी हूँ,
खुद से भी ज्यादा तो
अब मैं,
दूसरों की चिन्ता करने लगी हूँ।

और जाने कैसे सीख गई,

मैं चुप रहना,
सबकुछ यूँ चुपचाप सहना,
आप पर बात बात पे झल्लाने वाली मैं,
अब अधिकतर मौन ही रहती हूँ ,
आज गलती नहीं मेरी कोई,
सही हूँ ,
फिर भी चुपचाप सब सहती हूँ।

न जाने कैसे सीख गई

इतनी दुनियादारी,
मैं माँ,
कभी छोटी -छोटी बातों पे भी
आहत हो जाने वाली मैं,
आज बड़े बड़े दंश झेलना सीख गई,
एक छोटी सी परेशानी पर भी
फूट फूट कर रोने वाली मैं,
आज अकेले में पलकों की कोरें
गीली करना सीख गई।


पता नहीं कैसे सीख गई मैं,
"माँ"
ये सबकुछ,
जो मेरे बस का न था ,
ऐसा मुझे लगता था।  
जो मेरे लिए बना न था ,
ऐसा मुझे लगता था। 
पर देखो सीख ही गई मैं,
पता नहीं कैसे ?

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रविवार, 5 अप्रैल 2015

नारी की कहानी

ए नारी तेरी हरदम नई कहानी,
कहीं तू गंगाजल की बूँद,तो कहीं बहता पानी।
तेरे बिन ये दुनिया कैसे सुहानी?
कहीं तू गंगाजल की बूँद तो कहीं बहता पानी।

तू ज्योत कभी मंदिर की तो कहीं चूल्हे की आग है,
है शांति का प्रतीक और भड़की तो विध्वंस का श्राप है। 
सुन्दर इस जहान में ईश्वर की अनमोल कृति तू ,
कहीं सुर्ख रंगो में सजी तो कभी श्वेत वस्त्रों का मिला अभिशाप है। 

किसी को तेरा हँसना नहीं भाता,
किसी को तेरे आँसू देखे बिना चैन नहीं आता।  
ईश्वर के बाद तेरी ही धुरी पे टिका ये सारा संसार है.
फिर भी तेरा सुख से जीना यहाँ दुश्वार है। 

कन्या रूप में तो पूज्यनीय तू,
और नारी रूप तेरा उपेक्षणीय है। 
तेरा सबकुछ सहते हुए भी,
हिम्मत से यूँ जीते जाना वन्दनीय है। 

ए नारी तेरी हरदम नई कहानी,
कहीं तू गंगाजल की बूँद तो कहीं बहता पानी। 
तेरे बिना ये दुनिया कैसे सुहानी,
कहीं तू गंगाजल की बूँद तो कहीं बहता पानी।

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आपके विचार आप नीचे टिप्पणी में आसानी से लिख पाएंगे तो जरूर लिखिए। 
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शनिवार, 4 अप्रैल 2015

आप तो हंसिए





एक नारी की हँसी 

बचपन में खिलखिला के ही हँसा करती थी वो.... 
बड़ी होते-होते दुनिया ने दुनियादारी सिखा दी। 
आज कहते हैं दुनिया बदल गई, 
किसके सामने, कब, कितना ?
सब नाप-तौल के हंसना पड़ता है।  

पहले हँसी बस हँसी हुआ करती थी,
आज तो इसके कई नाम हैं।  
कभी बस मुस्कुराना,कभी झूठी हँसी, 
कहीं बनावटी भी हँसना पड़ता है। 

खिलखिलाना बिसरा है उसके लिए, 
मन की हँसी तो गुम सी हुई,
और लोग कहते हैं कि, 
ठहाके तो नारी के लिए अशोभनीय हैं,
तो बस.… 
दबी हँसी से ही काम चलाना पड़ता है।

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पढ़ कर क्या महसूस किया अपने टिप्पणी जरूर कीजियेगा।इस कविता में किसी भी तरह की कमी या त्रुटि की और ध्यान आकर्षित कराएँगे,तो कृपा होगी।
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रविवार, 29 मार्च 2015

दो शब्द....., गुरु द्रोणाचार्य

गुरु द्रोणाचार्य -वे जिनके ब्लॉग, मैंने ब्लॉग बनाते हुए visit किये और जाना कि ब्लॉग कैसे बनाया जाये,कैसे हिंदी में लिखा जाए और क्या क्या ब्लॉग पर लिखा जा सकता है। आप सभी की जानकारी में न होते हुए भी सबके ब्लॉग से कुछ न कुछ सीख लिया है।इसीलिए आप हुए द्रोणाचार्य और मैं एकलव्य और गुरुदक्षिणा के रूप में ये दो ब्लॉग बनाये हैं। 
http://lekhaniblogdj.blogspot.in/
http://lekhaniblog.blogspot.in/
अब गुरुदक्षिणा आपकी रूचि की है या नहीं, ये तो आप पढ़कर ही बता पाएंगे।अपना अमूल्य समय देकर मार्गदर्शन अवश्य कीजियेगा। अब तक आपसे जो ज्ञान मिला उसके लिए आपको सधन्यवाद और आगे अब आप मुझे प्रत्यक्ष मार्गदर्शन देंगे। इस आशा में अग्रिम धन्यवाद।



धन्यवाद द्रोणाचार्य प्रतिभा सक्सेना जी 

http://lambikavitayen5.blogspot.in/ 

आपके ब्लॉग लालित्यम का कुछ अंश पढ़ा और अहसास हो गया कि आपकी तरह लिखने के लिए मुझे सात जन्म लेने होंगे। न जाने कब मैं आपकी तरह भावपूर्ण और बांध कर रखने वाले साहित्य की रचना कर पाऊँगी। शायद कईं जन्म लग जाएँ। आपको पढ़ पाना मेरा सौभाग्य है।आपके लेखन में सब कुछ  होता है। विषय का ज्ञान,उसकी गहराई, सुन्दर शब्द रत्न और उनका अत्यंत सुन्दर वर्णन।मनोहरी है आपकी अभिव्यक्ति की शैली। कोख का करार की अंतिम क़िस्त पढ़ने की प्रतीक्षा अब और मुश्किल होती जा रही है। 




धन्यवाद द्रोणाचार्य अर्चना चावजी मेम 

http://archanachaoji.blogspot.in/

आपके ब्लॉग मेरे मन की :मैं का कुछ अंश पढ़ा आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई मैं।  आपकी हर रचना मन को छूती है।  अपने अपनी एक पोस्ट में लिखा है -

समझ नहीं आता मेरे लिखे को अच्छा कैसे कहता होगा कोई ,
क्या मुझसे भी बुरा लिखता होगा कही कोई ....

अगर आप इतना अच्छा लिखकर भी ऐसा सोच सकतीं हैं तो जरा इधर एक बार हमारा लिखा पढ़ने का भी साहस जुटा ही लीजिये।आप जान ही जाएँगी कि दुनिया में सबसे खराब कौन लिखता है। पहली बार आपके ब्लॉग से ही जानने को मिला है कि ब्लॉगिंग के ज़रिये मन की अभिव्यक्ति सिर्फ लिखकर व्यक्त करने का नाम नहीं। पॉडकास्ट,गीत, कवितायेँ इतना सबकुछ कैसे कर लेतीं हैं आप। निःशब्द हूँ मैं। अभिव्यक्ति के सभी माध्यम हैं आपके ब्लॉग पर। सौभाग्यशाली हूँ कि आपका ब्लॉग पढ़ने को मिला।
कठपुतली तो हम सभी हैं उस ईश्वर के हाथ की बस शुक्र है कि उसने अब तक हमारी डोर अपने हाथ से छोड़ी नहीं उस गुड़िया की तरह। 




धन्यवाद द्रोणाचार्य रश्मि प्रभा जी

http://lifeteacheseverything.blogspot.in/


आपके ब्लॉग मेरी भावनायें का का कुछ अंश पढ़ा। आपकी तो रग -रग में साहित्य बसा है साहित्य की महान ज्ञाता हैं आप। आपका लिखा मन को छूता है। आपके ब्लॉग को पढ़ने का असीम सौभाग्य कुछ समय पहले ही मिला है मुझे। आपने निःसंदेह अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने नाम को बखूबी सार्थक कर लिया है। अभी तो कविताओं का बीजारोपण शुरू ही किया है मैंने आपकी प्रतियोगिता में शामिल करने जितनी उत्कृष्ट कविताएँ तो नहीं है मेरी। पर आपके मार्गदर्शन रुपी जल से सिंचाई अगर मेरी लेखनी से रोपित, इन लेखन रुपी बीजों को मिल जाये तो शायद कुछ वक़्त के बाद इस मुकाम तक पहुँच पाऊँ।



धन्यवाद द्रोणाचार्य देवेन्द्र पाण्डेय जी 

http://devendra-bechainaatma.blogspot.in/

आपके ब्लॉग बैचैन आत्मा का कुछ अंश पढ़ा  आपका ब्लॉग जब भी पढ़ती हूँ,अधिकतर रचनाएँ पढ़ते हुए चेहरे पर बरबस ही एक धीमी सी निश्छल मुस्कान बिखर जाती है। मैं भी कभी आपकी तरह लिखकर, किसी के चेहरे पर ऐसी मुस्कान ला पाऊँ, ऐसा करने के लिए मेरे लिए तो सच में अभी बहुत "दूर है मंज़िल"



धन्यवाद द्रोणाचार्य मंटू कुमार जी

http://mannkekonese.blogspot.in/

आपका ब्लॉग मन के कोने से सबसे पहले देखा। आप का ब्लॉग पूरा पढ़
चुकी हूँ। यथार्थ  कहता और लिखता है आपके मन का कोना। बहुत यूनीक भी लिखते हैं आप। बस आपको पढ़ने के लिए काफी इंतज़ार करना पड़ता है। थोड़ा ज्यादा लिखेंगे तो हमें भी आपके साहित्य का रसानंद मिलता रहेगा। आधुनिक ज़माने की बेरंग होली मनाने से अच्छा रास्ता तो वही है मैं भी ऐसी ही होली मनाना पसंद करती हूँ कागज़ पर कलम की पिचकारी से शब्दों और भावनाओं के नित नए रंग बिखेरना। 



धन्यवाद द्रोणाचार्य अनु सिंह चौधरी जी 

http://mainghumantu.blogspot.in/

आपका ब्लॉग मैं घुमन्तु पढ़कर काफी प्रेरणा मिली। मैं तक़रीबन भूल ही चुकी थी लेखन मेरे अंदर का सारा कचरा साफ कर देता है। आपका ब्लॉग पढ़कर याद आ गया और आजकल समय निकाल कर सबसे पहले आपका मॉर्निंग पेज पढ़ती हूँ और फिर खुद के मॉर्निग पेजेस लिखने लगी हूँ। लेकिन वो पर्सनल डायरी तक ही सीमित रखे हैं। साहित्य के आपके जितने  सुंदर मोती बिखेरना जिस दिन सीख जाउंगी उस दिन आपके मॉर्निंग पेजेज की तर्ज पर कुछ नया शुरू करने का साहस जरूर जुटाऊंगी। और हाँ घर के काम मुझे भी बड़े unproductive और उबाऊ लगते हैं। 



आप जैसे ब्लॉग जगत के दिग्गजों के बीच मेरा कोई स्थान तो नहीं है 

बस आप सबका मार्गदर्शन पाने के लिए आप सबसे जुड़ने का असीम

साहस जुटा पाई हूँ। कृपया अपने अमूल्य समय का कुछ अंश देकर 

मेरी रचनाओं के विषय में मेरी आँखों पर बंधी पट्टी को उतारते 

रहिएगा। ताकि सच में कुछ अच्छा और रचनात्मक लिख पाऊँ। 

आपकी शिष्या 
dj 

दो शब्द….... आप सब को धन्यवाद

आप सब को धन्यवाद 

ईश्वर - मुझे मनुष्य जन्म देने के लिए। अन्यथा न ये मस्तिष्क होता, न मन और न विचार। और ये सब न होते तो मेरी लेखनी भी न होती। 


मेरे माता पिता -मुझे जन्म देकर अच्छा शिक्षण अच्छे संस्कार देने,मेरी सुसंस्कृत वातावरण में परवरिश करने, मुझे अपनी स्वतंत्र सोच बनाने और उसे बनाये रखने की प्रेरणा देने,साथ ही उसका समर्थन करने के लिए मैं आजीवन उनकी ऋणी रहूँगी।  


मेरे गुरुजन - विशेषकर आदरणीया श्रीमति सुनीता काले मेम, आदरणीय श्री तिवारी सर, आदरणीया श्रीमति दिव्यलता शर्मा मेम, आदरणीया ब्रह्मे मेम, आदरणीया श्रीमती श्रीवास्तव मेम,आदरणीया श्रीमती रीना मेम और महर्षि वेद व्यास विद्या मंदिर के सभी माननीय गुरुजन। 

आप सही मायने में मेरे सच्चे गुरु हैं, जिन्होंने समय-समय पर मुझे सही ज्ञान देने के साथ-साथ मेरी प्रतिभा को तराशने,मुझे प्रोत्साहित करने का भी कार्य किया है। 

मेरे सभी मित्र एवं रिश्तेदार - जो ब्लॉग बनाने के पहले भी और अब भी मेरी कृतियाँ मेरे कहने पर झेलते हैं और प्रतिक्रियाएं भी देते रहते हैं। तहेदिल से आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद। 


गुरु द्रोणाचार्य -वे जिनके ब्लॉग, मैंने ब्लॉग बनाते हुए visit किये और जाना कि ब्लॉग कैसे बनाया जाये,कैसे हिंदी में लिखा जाए और क्या क्या ब्लॉग पर लिखा जा सकता है। आप सभी की जानकारी में न होते हुए भी सबके ब्लॉग से कुछ न कुछ सीख लिया है।इसीलिए आप हुए द्रोणाचार्य और मैं एकलव्य और गुरुदक्षिणा के रूप में ये दो ब्लॉग बनाये हैं। 

http://lekhaniblogdj.blogspot.in/
http://lekhaniblog.blogspot.in/
अब गुरुदक्षिणा आपकी रूचि की है या नहीं, ये तो आप पढ़कर ही बता पाएंगे।अपना अमूल्य समय देकर मार्गदर्शन अवश्य कीजियेगा। अब तक आपसे जो ज्ञान मिला उसके लिए आपको सधन्यवाद और आगे अब आप मुझे प्रत्यक्ष मार्गदर्शन देंगे। इस आशा में अग्रिम धन्यवाद।
 dj