रविवार, 17 मई 2015

धरोहर


रविवार, 19 अप्रैल 2015 को मेरे द्वारा प्रकाशित कविता 

"पराई"  (नारी का, नारी को, नारी के लिए....: "पराई"पर परम आदरणीय श्रीमान सुशील कुमार जोशी साहब द्वारा प्रतिउत्तर में लिखी गई कविता,जो मेरे लिए किसी धरोहर से कम नहीं ये धरोहर सहेजने हेतु ही आज यहाँ प्रकाशित की है। 


बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है माना है 

पर कुछ ऐसा भी नहीं है क्या ? :)


समय कुछ कहीं कहीं 

बदलता हुआ भी 

नजर आ रहा है 

बेटी और बेटे में 

फर्क करने से 

आदमी अब कुछ 

बाज आ रहा है 

धैर्य रखना है 

और मजबूत 

करना है बेटियों 

को इतना अब 

आशा भी है 

और विश्वास भी है 

बेटी में बेटा और 

बेटे में बेटी 

देखने का समय 

जल्दी और बहुत 

जल्दी ही आ रहा है :)

गुरुवार, 7 मई 2015

तेरी प्रीत

मैंने जोग लिया हर ज़हर पिया,
तेरी प्रीत में ये जग छोड़ दिया, 
इस प्रीत में ऐसी खो गई मैं ,
हर शख्स से नाता तोड़ लिया।  

बैरी बन गया तू ही मोरा पिया,
यही सोच के अब ये जले जिया, 
तेरी प्रीत में जग से बैर लिया,
तूने जग से ही नाता जोड़ लिया।  

हर शख्स मुझे समझाए यहाँ ,
तेरी प्रीत को ही ठुकराये जहाँ, 
मैं साज़ हूँ तू संगीत पिया ,
बिन धड़के कैसे फिर रहे जिया। 

मेरे दिल की लगी बस मैं जानूँ ,
तेरी प्रीत को ही सब कुछ मानूँ, 
तेरे प्रेम की ही धरा में रहूँ  ,
फिर कैसे तुझे अलविदा में कहूँ।  

एक बस तेरा इंतज़ार करूँ ,
बस तुझसे ही आँखें चार करूँ, 
बैराग सा है इक रोग सा ये,
इस इश्क़ में सारे दर्द सहूँ।

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