शुक्रवार, 12 जून 2020

एक पत्र मुख्यमंत्रीजी के नाम

माननीय मुख्यमंत्री महोदय,

सादर नमन,

विषय: ट्यूशन फीस अनुमति की घोषणा के संबंध में पालकों की समस्याएं, सवाल एवं विद्यालयों की अनावश्यक मांगों के महत्वपूर्ण बिंदु जिन्हें घोषणा में शामिल नहीं किया गया, पर आमजन का आपसे निवेदन एवं उनके सुझाव बाबत।

विनम्र निवेदन करते हुए, मैं आपका ध्यान एक ऐसे ज्वलंत विषय की और आकर्षित करना चाहती हूँ,जो आमजन विशेषकर अभिभावकों के समक्ष इस आपातकाल परिस्थिति में मानसिक चिंता उत्पन्न करने वाली विशेष व गंभीर समस्या बन चुका है।

  माननीय मुख्यमंत्री महोदय द्वारा दिनांक 8 जून को इंदौर दौरे के दौरान जारी किये गए विडिओ में विद्यालयों को ट्यूशन फीस लिए जाने की अनुमति प्रदान की गई जिसका अनेक सीबीएसई/इंटरनेशनल विद्यालय अनुचित लाभ उठा रहे हैं।लगभग सभी अभिभावकों का मत है कि इस विषय पर पूर्णतः विचार विमर्श नहीं किया गया। साथ ही विभिन्न मुख्य बिंदुओं का इसमें समावेश नहीं किया गया जिस कारण विद्यालय मनमाने चार्ज अभिभावकों पर थोपने हेतु स्वतंत्र हैं और आज अभिभावक मानसिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं ।विषय सम्बंधित समस्याओ व् उनके सुझावों का समावेश कर लिखे इस पत्र का आशय फीस का विरोध जताना नहीं है अपितु उन्हीं बिंदुओं की और प्रशासन का ध्यान आकर्षित करना है जिन पर आमजन के मत से विचार किया जाना आवश्यक है।

समस्या1 -सबसे महत्वपूर्ण बात इसमें उन अभिभावकों की व्यथा की और बिलकुल ध्यान नहीं दिया गया जो निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं तथा जिन्हे सम्पूर्ण लॉकडाउन के दौरान या तो आधे वेतन का भुगतान हुआ है या वेतन प्रदान ही नहीं किया गया है। कुछ ऐसे भी हैं जिनको 1 ही महीने का वेतन मिला है वह भी आधा या उससे भी कम।साथ ही कुछ निजी संस्थानों को अब भी खुलने की अनुमति नहीं मिली है यथा रेस्टोरेंट, कैफ़े, मॉल, सैलून, जिम इत्यादि। इस क्षेत्र से जुड़े कर्मचारी जिनको न लॉकडाऊन में वेतन मिला है और आगे भी कब मिलेगा कोई उम्मीद नहीं है,कैसे उस ट्यूशन फीस का भुगतान कर सकेंगे जो एक छोटा मोटा आंकड़ा न होकर कुल फीस का 80 से 90 प्रतिशत होती ही है।आपके द्वारा ट्यूशन फीस की अनुमति विद्यालयों को लेने की दी गई और जिसके साथ ये पक्ष रखा गया कि ये देना आवश्यक है क्योंकि विद्यालयों को भी परिचालन खर्च यथा स्टाफ को सैलरी और अन्य खर्च वहन करने होते हैं ।जब अन्य निजी क्षेत्रों को वेतन ही नहीं मिला फिर भी वे जैसे तैसे अपना घर् चला रहे हैं और राष्ट्रीय आपदा से आई इस विपत्ति से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं जबकि उन्हें किसी के द्वारा भुगतान प्राप्त नही हो रहा है। वैसे ही इस राष्ट्रीय आपदा में विद्यालयों को भी अपने हिस्से का नुकसान स्वयं उठाकर शिक्षकों को वेतन दिया जाना चाहिए । वैसे भी सर्व विदित है कि शिक्षा जगत सबसे बड़ा व्यापार बन चुका है लगभग सभी विद्यालय मुनाफे के कारोबारी रहे हैं। अतः इस विपत्ति के समय वे अपने सभी परिचालन खर्च स्वयं उठाने में सक्षम हैं।

सवाल 1- क्या ट्यूशन फीस लिए जाने की अनुमति देने का यह निर्णय ऐसे अभिभावकों को मानसिक रूप से पूर्णतः तोड़ देने क लिए काफी नहीं होगा,जिन्हे 3 महीनों से वेतन नहीं मिला फिर भी वे परिवार के पालन पोषण हेतु हिम्मत जुटा कर संघर्षरत हैं ? उदाहरण हेतु 1परिचित अभिभावक जो रेस्टोरेंट में कार्यरत हैं,15000 सैलेरी पर। पुरे लॉडाउन में मात्र 5000 सैलरी उन्हें मिली और अब वो भी बंद है। किराए के मकान में रहते हैं और पत्नी भी उन्ही के रेस्टोरेंट में रिसेप्शनिस्ट थीं। अब स्टाफ का खर्च वहन न कर पाने के कारण उन्हें दूसरी नौकरी देखने को कह दिया गया है। बच्चे की प्रत्येक तिमाही की सिर्फ ट्यूशन फीस ही 7700 है। ज़ाहिर है ऐसी स्थिति में उनके लिए फीस देने की कल्पना करना ही कितनी मानसिक यंत्रणा देने वाला विचार होगा।

सुझाव 1- ट्यूशन फीस का मापदंड निर्धारित किया जाना चाहिए ये कम से कम हो। साथ ही ऐसे अभिभावक जो कैफ़े रेस्टोरेंट जिम सैलून मॉल इत्यादि जैसे निजी संस्थानों में कार्यरत हैं और जिन्हें वेतन नही मिल रहा,उनके लिए फीस पूर्णतः माफ़ की जानी चाहिए।


समस्या २- लगभग सभी विद्यालयों ने अपने अपने स्तर पर ऑनलाइन कक्षाएं प्रारम्भ कर दी हैं। कुछ प्रतिष्ठित विद्यालयों ने तो अप्रैल में भी तथाकथित कक्षाएं दी। मई के महीने में समर कैम्प के नाम पर बच्चों को ऑनलाइन उलझाये रखा। अब जून से नियमित कक्षाओं के स्वांग शुरू है। क्षमा चाहूंगी पर स्वांग इसलिए  कहा कि 10 तरह के एप्लीकेशन अभिभावकों को अनिवार्यतः मोबाइल में डाउनलोड करने को निर्देशित किया गया है। क्लास सिर्फ 15 मिनिट या आधे घंटे की दी जा रही है और उसमें भी नर्सरी से लेकर कक्षा5 तक के छोटे छोटे बच्चों को भी अनिवार्य रूप से क्लास जॉइन करने के लिए कहा जा रहा है। विद्यालय प्रबंधन की ऑनलाइन क्लास के नाम पर किसी भी मीटिंग एप्लिकेशन पर टीचर आधा घंटा बच्चों से बात कर चली जाती है तत्पश्चात विभिन्न व्हाट्सएप्प समूहों तथा विद्यालय द्वारा निश्चित किये गए वेबसाइट/पोर्टल पर अभिभावकों के लिए निश्चित किये गए प्लानर में से बच्चों को होमवर्क करवाने को कहा जाता है। जिसमे 25 30 तरह की एक्टिविटी के साथ यू ट्यूब पर विभिन्न चैनल्स द्वारा पहले से अपलोड किए हुए वीडियो की लिंक दी जाती है। जो बच्चों को दिखाना आवश्यक होता है। साथ ही इन ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से अभिभावकों का अतिरिक्त खर्च बढ़ गया है 250 से 350 प्रतिमाह का डाटा रिचार्ज भी करवाना ह

सवाल 2- अभिभावकों को जब अपने काम छोड़कर पढ़ाई खुद ही करवानी है  एप्लीकेशन तथा यूट्यूब के विडिओ ही दिखाने हैं तो ये ऑनलाइन कक्षाओं का स्वांग किसलिए?ये तो अभिभावक स्वयम भी बिना किसी मार्गदर्शन के स्वयं भी बाल विहार (किंडरगार्टन) तथा प्राथमिक कक्षाओं के छोटे बच्चों तो पढ़ा ही सकते हैं अपने समय के से अधिकतर समय बच्चे की पढ़ाई पर देना है पहले खुद पढ़ना फिर बच्चे को पढ़ाना है। और उसके बाद पूरी फीस भुगतान भी करना है साथ ही विरोध करने पर बच्चे का परिणाम रोक लिए जाने के भय से भी लड़ना है। जब सभी अभिभावक को करना है तो सेवा शुल्क किस बात का?

सुझाव2- बाल विहार और प्राथमिक कक्षाओं के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की अनिवार्यता समाप्त की जानी चाहिए या इसके लिए मापदंड और समय निर्धारित किया जाना चाहिए। किसी भी एप्लीकेशन के डाउनलोड करने की अनिवार्यता समाप्त की जानी चाहिए। किसी मजबूरीवशफीस भुगतान कम करने या न करने पर रिजल्ट न रोके जाने का आदेश जारी किया जाना चाहिए।

समस्या 3- माननीय मुख्यमंत्री जी के उद्बोधन में सिर्फ ट्यूशन फीस लिए जाने की अनुमति दी गई थी पर ट्यूशन फीस का कोई पैमाना कोई मापदंड निर्धारित नही किया गया। प्रत्येक विद्यालय की ट्यूशन फीस उनकी प्रतिष्ठा के अनुसार अलग अलग है साथ ही मौजूदा स्थिति में अभिभावकों को वेतन प्राप्ति के मापदंड भी बदल गए हैं ।कइयों को वेतन मिला ही नही और न ही अब मिल पा रहा है। ऐसे में फीस भरना उनके लिए बड़ी समस्या है। साथ ही कोई मापदंड घोषित न किये जाने से विद्यालय ट्यूशन फीस के नाम पर मनमाना चार्ज वसूल रहे हैं। अनावश्यक खर्चों को इसमें जोड़ा जा रहा है। साथ ही ऑनलाइन क्लास के स्वांग का चार्ज भी सेवा शुल्क के नाम पर वसूलने की तैयारी की जा चुकी है। इसके साथ ही लर्निंग किट या एडमिशन किट का चार्ज भी लिया जा रहा है।
 बच्चों को होमवर्क करवाने के लिए स्कूल की बनाई हुई वर्कशीट स्कूल के पोर्टल पर अपलोड की जा रही है और अभिभावकों को उसका प्रिंट निकालकर उसी पर होमवर्क करवाने को कहा जा रहा है। क्योंकि इसके पहले विद्यालय इसे एडमिशन किट के या लर्निंग किट के नाम पर अभिभावकों को अनिवार्य रूप से बेचा करते थे। अभी भी अभिभावकों को इस किट को ऑनलाइन आर्डर करने की अनिवार्यता कर दी गई है। किट को घर पर अभोभवकों को मंगवाना है और उसे विद्यालय खुलने पर जमा भी करवाना होगा। ऐसे कई अनावश्यक खर्चों के फरमान तथाकथित इंटरनेशनल  सीबीएसई विद्यालयों द्वारा जारी कर दिए गए हैं। साथ ही जब तक आप किट आर्डर नही करते,आपको बच्चे को प्रिंटआउट निकलवा कर ही होमवर्क करवाना है।
जानकारी के मुताबिक ये लर्निंग किट प्रत्येक विद्यालय के स्टैण्डर्ड के हिसाब से 4600 से 8000 तक के भुगतान पर दी जाती है(ये आंकड़ा बाल विहार ओर प्राथमिक शालाओं की किट का है।) जिसमे अनावश्यक वस्तुओं का अंबार रहता है स्कूल के नाम की प्रिंटेड कॉपी होमवर्क के लिए तथा स्कूल वर्क के लिए, बच्चों का आईडी कार्ड, अभिभावको के लिए विशेष कार्ड के साथ स्कूल का नाम प्रिंट किया हुआ स्कूल बैग,जैसी गैर ज़रूरी वस्तुएं होती है जिनका इतना चार्ज वसूला जाता है।
साफ है कि ऐसे व्यापारिक प्रतिष्ठान 1 साल फीस माफ कर अपने स्टाफ को वेतन आराम से दे सकते हैं। जबकि इस साल फीस के अलावा उनकी ऑनलाइन इनकम अलग से होगी। स्कूलों ने अपने वीडियो यूट्यूब पर भी अपलोड किए हैं। कुल मिलाकर इस आदेश का आशय स्कूलों की भरी जेब को अभिभावकों की खाली जेब से भरने के साथ ही स्कूलों को ऑनलाइन इनकम के मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया जाना है। यानी ऐसी प्राकृतिक आपदा में भी विद्यालय व्यापार मुनाफे का व्यापार साबित होगा।

सवाल 3- होमवर्क घर मे उपलब्ध किसी कॉपी या रजिस्टर पर भी हो सकता है या दुकानों पर उपलध 10 rs की कॉपी पर भी तो जब बच्चे स्कूल नही जा रहे तो इस अनावश्यक किट की क्या आवश्यकता है? पठान सामग्री तो पोर्टल ओर वीडियो पर ही उपलब्ध है । सिर्फ ट्यूशन फीस लोए जाने की घोषणा माननीय मुख्यमंत्री महोदय के द्वारा की गई थी फिर उस के साथ  किट और ऑनलाइन क्लास के सेवा चार्ज वसूलने का अधिकार विद्यालयों को किसने दिया?

सुझाव 3- ऑनलाइन किट या क्लासेस के नाम पर लिए जाने वाले अन्य सभी शुल्कों पर रोक लगाई जानी चाहिए किट की अनिवार्यता समाप्त की जानी चाहिए। एक विस्तृत आधिकारिक घोषणा कर, विद्यालयों को सम्पूर्ण ट्यूशन फीस की अनुमति न देकर 1 निश्चित फीस अमाउंट या कक्षा के प्रति घण्टे के हिसाब से शुल्क जो कि अभिभावक इन परिस्थितियों में वहन कर सके वसूलने के लिए ही अनुमति दी जानी चाहिए।

बाल विहार और प्राथमिक शाला के अभ्यर्थियों की फीस पूर्णतः माफ की जानी चाहिए। तथा ऑनलाइन कक्षा की अनिवार्यता समाप्त कर उनकी ऑनलाइन क्लासेस का समय कम से कम रखा जाना चाहिए। साथ ही अभिभावकों द्वारा यदि इस साल फीस कम दी जाती है या वे देने में असमर्थ हों तो भी बच्चे का रिजल्ट तथा टी. सी. न रोके जाने के आदेश दिए जाने चाहिए ताकि यदि वे इस आपदा के बाद बच्चे को उस विद्यालय में पढ़ाने में असमर्थ हों तो वे अपने बच्चे का प्रवेश अपने बजट के अन्य विद्यालय में करवा पाने में स्वतंत्र हों तथा इसमें उन्हें किसी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।


शिक्षा तंत्र की मनमानी से व्यथित मेरे जैसे लाखों अभिभावकों की आपसे विनम्र विनती है कि इन सभी बिंदुओं का एक लिखित आदेश बनाकर सभी विद्यालयों को प्रेषित किया जाए ताकि वे नियमानुसार ही फीस लें और मनमाना शुल्क अभिभावकों को से न वसूलें। जिससे इस विपत्ति के समय मे जब वे अनेक मानसिक परेशानियों से ग्रस्त होकर लड़ने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें इस सबसे बड़ी चिंता से मुक्ति मिले साथ ही वे जीवन संग्राम में दुबारा खड़े हो सकें।
जय हिंद
मध्यप्रदेश से एक आम नागरिक🙏

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सटीक एवं विचारणीय रचना ।

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  2. दिव्या,पालको की बहुत ही महत्वपूर्ण समस्याओं की ओर ध्यान खींचा है आपने। काश, आपका यह खत मुख्यमंत्री तक पहूँचे।

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