रविवार, 19 अप्रैल 2015 को मेरे द्वारा प्रकाशित कविता
"पराई" (नारी का, नारी को, नारी के लिए....: "पराई") पर परम आदरणीय श्रीमान सुशील कुमार जोशी साहब द्वारा प्रतिउत्तर में लिखी गई कविता,जो मेरे लिए किसी धरोहर से कम नहीं ये धरोहर सहेजने हेतु ही आज यहाँ प्रकाशित की है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है माना है
पर कुछ ऐसा भी नहीं है क्या ? :)
समय कुछ कहीं कहीं
बदलता हुआ भी
नजर आ रहा है
बेटी और बेटे में
फर्क करने से
आदमी अब कुछ
बाज आ रहा है
धैर्य रखना है
और मजबूत
करना है बेटियों
को इतना अब
आशा भी है
और विश्वास भी है
बेटी में बेटा और
बेटे में बेटी
देखने का समय
जल्दी और बहुत
जल्दी ही आ रहा है :)
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अपनी लेखनी से ये अमूल्य मोती यहाँ बिखेरने के लिए
हृदय से आभार।
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
और विश्वास भी है
जवाब देंहटाएंबेटी में बेटा और
बेटे में बेटी
देखने का समय
जल्दी और बहुत
जल्दी ही आ रहा है :)
बिलकुल सही है ...सुन्दर प्रस्तुति...
bahut hi sunder pratuti..."
जवाब देंहटाएंबेटी और बेटे में
फर्क करने से
आदमी अब कुछ
बाज आ रहा है
धैर्य रखना है "...sahi kahaa aapne....
सोच बदलेगी तो सुबकुछ ठीक हो जायेगा। .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
आप के ब्लॉग की जितनी भी तारीफ की जाए कम है मुझे बहुत अच्छा लगा मैं भी अपने ब्लॉग पर काम रहा है हु जो की मनोरंजन से सम्बंधित है शायद आपको पसंद आये http://guruofmovie.blogspot.in
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंsunder bahot sunder................!!!!!!
जवाब देंहटाएंजोशी जी आपकी अन्य रचनाओं में भी हमेशा एक कशिश व पूरा लेख पढ़ने कि इच्छा अंतिम तक बनी रहती है....वैसे ही इस लेख 'धरोहर' में भी वही बात है....आपके इस लेख के लिए आपको सह्रदय शुभकामना......अपने समस्त लेखो को आप शब्दनगरी के लेखकों व पाठकों के समक्ष साझा भी कर सकतें हैं.......
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