मैंने जोग लिया हर ज़हर पिया,
तेरी प्रीत में ये जग छोड़ दिया,
इस प्रीत में ऐसी खो गई मैं ,
हर शख्स से नाता तोड़ लिया।
बैरी बन गया तू ही मोरा पिया,
यही सोच के अब ये जले जिया,
तेरी प्रीत में जग से बैर लिया,
तूने जग से ही नाता जोड़ लिया।
हर शख्स मुझे समझाए यहाँ ,
तेरी प्रीत को ही ठुकराये जहाँ,
मैं साज़ हूँ तू संगीत पिया ,
बिन धड़के कैसे फिर रहे जिया।
मेरे दिल की लगी बस मैं जानूँ ,
तेरी प्रीत को ही सब कुछ मानूँ,
तेरे प्रेम की ही धरा में रहूँ ,
फिर कैसे तुझे अलविदा में कहूँ।
एक बस तेरा इंतज़ार करूँ ,
बस तुझसे ही आँखें चार करूँ,
बैराग सा है इक रोग सा ये,
इस इश्क़ में सारे दर्द सहूँ।
(स्वरचित ) dj कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google
इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित नहीं कर सकते। dj कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google
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मेरे द्वारा इस ब्लॉग पर लिखित/प्रकाशित सभी सामग्री मेरी कल्पना पर आधारित है। आसपास के वातावरण और घटनाओं से प्रेरणा लेकर लिखी गई हैं। इनका किसी अन्य से साम्य एक संयोग मात्र ही हो सकता है।
शानदार रचना।
जवाब देंहटाएंशानदार रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएं